Thursday, December 29, 2022

कल और आज

कल की बात थी सुहानी ,
आज और कल की ये कहानी,
परसों की सरसों हो गई पुरानी,
नर्सों फिर दोहराए आज कल की कहानी।

सुबह की अंगड़ाई थी जैसे अंग लगाई,
चाय पराठा लगे रस मलाई,
शाम को चले मूडी लाई,
जो खाने के पहले की थी खवाई।

रात की बात डिबरी और चटाई के साथ,
लाइट जो चली जाए तो थी क्या बात,
अंताक्षरी और कहानी का था सटीक पल,
पल तो बीत गया बचा है बस कल।


ये कल कब आयेगा पधारो म्हारे देस,
इंतजार है तुम्हारा, भूल के सारे द्वेष,
थोड़ी जल्दी आओ, आओ किसी के भेष,
पुनरावृत्ति कर दो जिसकी बस स्मृति है शेष।



10 comments:

Anonymous said...

Wow, grt grt poetry sir..

Akansha Chaubey said...

Nice jiju😍😍

Anonymous said...

👌👌

Anonymous said...

👌👌👌👌

Anonymous said...

Beautifulll

Anonymous said...

Nice👍

Karunendra Verma said...

Nice dear...👏👏

Anonymous said...

Wow great

Anonymous said...

Very nice 👍🏻👍🏻👍🏻

Anonymous said...

Waahh👌👌👌👌