Saturday, April 18, 2009

क्या पाया

जीवित रहकर हमने क्या पाया,
विचलित रहते हर घडी, कृपा करके क्या पाया,
खड़े रहे दो राहों में ,रास्ता दिखा कर क्या पाया,
प्यासे कंठ रहे नदी तट पर,किसी के इंतज़ार से क्या पाया,
मानते रहे रूठे को,उसके पश्चात् क्या पाया
दुसरे के स्वार्थ को संतुष्ट करते रहे,अस्वार्थी होने से क्या पाया ?

जिनमे अक्षम्यता नहीं, उनपर कृपा करने से क्या पाया,
जिनमे सुलह नहीं, उनको सुलझाने से क्या पाया,
जिनकी ज़िन्दगी में उमंग की उदान नहीं, उन्हें इतिहास बनाने से क्या पाया,
जिनसे सदा उपेक्षा मिले,उनसे अपेक्षा करने से क्या पाया?