Tuesday, July 3, 2012

मैं हूँ आधुनिक मनुष्य


मैं हूँ आधुनिक मनुष्य ,
आधुनिकता है मेरा पर्याय,
आधुनिकता है मेरी गाथा,
हूँ मैं अपनी ही धुन में,
अनैतिकता मैं करता जाता,
मैं हूँ आधुनिक मनुष्य,
ये धुन है एक अनैतिक गाथा..




मैं हूँ परिपूर्ण,
मैं हूँ संपूर्ण,
उपयोग करता मैं सबका,
कार्य सिद्धि कर जाता,
जो अगर तू न पिघले,
जज़्बातों के मैं तीर चलाता,
मैं हूँ आधुनिक मनुष्य,
ये धुन है एक अनैतिक गाथा..




मेरे जीवन में तेरी अहमियत क्या?
तू तो एक रास्ता है, जो तरक्की को जाता,
साम-दाम-दंड-भेद, सभी मैं अपनाता,
देख मैं तुझ पर वार करता,
फ़िर भी तुझे जीत जाता,
आखिरकार ऊँचाइयों की बुलंदियों पे पहुंचना,
यूँ ही सुगम न हो जाता..
मैं हूँ आधुनिक मनुष्य,
ये धुन है एक अनैतिक गाथा..



अपनी भौतिक संतुष्टि की अनुभूति हेतु,
तेरी  आत्मा को मैं दुःख पहुंचाता,
लेकिन मुझे इससे वास्ता क्या,
मैं तो अपने ही भव-सागर में गोते लगता,
मैं हूँ आधुनिक मनुष्य,
ये धुन है एक अनैतिक गाथा..




दर्पण में तनिक देख लो खुद को,
अदृश्य सी कुछ बेड़ियों से तुम हो जकड़े,
जाने क्यूँ मुझ पर समर्पित तुम लगते,
तुम्हारे जज़्बातों से खिलवाड़ मैं करता,
और तुम अभी तक हो मुझको पकड़े?
मैं हूँ आधुनिक मनुष्य,
ये धुन है एक अनैतिक गाथा..





जो अगर रूठ जाओ मुझसे कभी तुम,
भूल के में भी दूर न जाने की सोचना तुम,
पता तुम्हे भी है की सब हैं आधुनिक आजकल,
खोज न पाओगे मुझसे बेहतर अनैतिक आज या कल,
मैं हूँ आधुनिक मनुष्य,
ये धुन है एक अनैतिक गाथा..