आता है चंद्रमा , कहता कुछ मुझसे है ..
आते हैं तारे, चाहते कुछ मुझसे है..
फिर आई रात, कुछ खुश सी यह मुझसे है,
इनका है कहना, अपनों के संग तुम्हे है रहना,
| अलग न होना परिवार से, विनती बार बार है |
हमारा अपना परिवार है,
रातें भी गुलज़ार है ,
एक नदी हैं हम .... अकेले मझधार है,
एक साथ जगमगाते हम..किसकी मज़ाल है ?
| अलग न होना परिवार से, विनती बार बार है |
अपने तो अपने ही होते हैं,
दूसरो के अपने तो सपने होते हैं ,
दूसरो के अपनों से जो रिश्ता गहराया ,
उसी पल अपनों से रिश्ता सिम्टाया ,
बात जान लो ऐ मेरे मित्र..
अपनों से बढ़ कर अपना नहीं दूजा कोई भी पराया |
| अलग न होना परिवार से, विनती बार बार है |
बंधन टूटे , टूटे रिश्ते और नाते .
एक बार जो छोड़ गया, न बन पाए फिर से वह सितारा,
बिखर जाता वो फिरता रहता मारा-मारा,
शून्य हो जाता अंत में ,ये किसकी आँख का था तारा ?
| अलग न होना परिवार से, विनती बार बार है |
8 comments:
LOVE IT:) its really good
Very nice.. you're quite professional now.. :)
Excellent.
Dhanyavaad bhai :) . aap sab ki kripa hai.
wat a great thinking of mind
poem writer, poem writer... I like this one specially, don't know why.
I will analyse the poem another time later, to understand better and better.
Keep writting, talented friend :)
thanks apurva
thanks Natalia :)
All you friends, and my family and emotions towards you all are the motivation for me to write the poems.
thanks for the blessings...yours Swap.
Very emotional one. nice work :)
धन्यवाद भाई :D
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