Friday, January 21, 2011
मेरा बचपन
उड़ना अब भी चाहता हूँ, पर क्या करूँ अब मैं बड़ा सा हो गया हूँ ,
चाहता अब भी हूँ खेलना, पर अब वह मजा कहीं छुप सा गया है,
चाहता अब भी हूँ सब कह डालना , पर अब थोड़ा सोचना पड़ता है,
क्योंकि यारों अब मैं बड़ा सा हो गया हूँ |
काम अधूरा करने की आदत अब भी है, पर जो अब एक सज़ा सी है ,
हाथों में अब कुछ भी नहीं, क्योंकि अब पाने के लिए जिद का सहारा नहीं रहा है,
यादों की बारात में बचपन का ही अफसाना सा रह गया है,
बस डूबती कश्ती में एक तिनके का सहारा सा रह गया है |
सुबह होते ही बिस्तर गिला करने की आदत सी रही है,
बात -बात पर गुस्साने की फितरत रही है,
बस जिद पूरा करने वाला समय कहीं खो सा गया है,
उड़ना अब भी चाहता हूँ, पर क्या करूँ अब मैं बड़ा सा हो गया हूँ|
दूर जाते देख आपको मन सशंकित सा अब भी होता है,
पूरे वेग से हाथों को झुला कर टाटा करने का मन अब भी करता है,
पर नहीं कर यह पाता,अब यह सब अजीब सा जान पड़ता है,
क्योंकि यारों अब मैं बड़ा सा हो गया हूँ |
पक्षियों, जानवरों और चींटियों के साथ बीतने वाला पल , पलक झपकते ही बीत गया,
अब तो बस उन यादों का सहारा सा रह गया है,
पग -पग ज़िन्दगी में, खुशियों के उन पलों का नज़ारा सा रह गया है,
आँखों को मूंद कर समय काटने का एक बहाना सा रह गया है,
दोहराना अब भी चाहता हूँ उस जिंदगी को,गुजरा पल बस एक तराना सा रह गया है |
||उड़ना अभी भी चाहता हूँ, पर क्या करूँ अब मैं बड़ा सा हो गया हूँ|
उड़ना = हाथों को फैला कर दौड़ना - कूदना
आपको = परिवार के सदस्य
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13 comments:
thanks Mr wang. please tell me how did you found my page?
स्वप्निल भाई, जीवन के सत्य को आपने इतनी सहजता से बयां कर दिया है, जैसे बहती हुआ पानी। हार्दिक बधाई।
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हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ भाई ..
धन्यवाद , मुझे ख़ुशी है की इस पोएम ने आपको बचपन की याद दिला दी .
Fantastic. every person's dream, back to the good old days
thanks bhai :D
सुबह होते ही बिस्तर गिला करने की आदत सी रही है,
^^^ hahaha
Vaise bahut hi sundar kavita hai... bachpan ka yaad dila deti hai. :)
thanks bro ;)
Bahut sundar kavita likhi hai bhai...
dil khush ho gaya ..............wah wah...
thank you shashank.. it's good to know that people are liking it :)
very true and touching :) hum jaise jaise bade hote hain, ek hichkichat si aa jati hai.... bachpan ka carefree aur fearless attitude kahin peeche reh jaata hai!
yes daksha... that we all miss very much. thanks for liking this poem :)
awesome ,yaad aa gaye wo bachpan ki yaadden.........realy nice
good...
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