कू-कू कूजती कोयल,
पग-पग बहता निर्झर,
लह-लहाती ये लहर,
डगमगाती सी डगर,
इसी पथ के हम पथिक, विश्वास से बढ़ें अगर..
झर- झरता पानी, करता पानी- पानी,
वक़्त को आगे ढकेलता, ख़ुशी-ग़म मौसम सबको देता,
बाँटता हँसी ख़ुशी के पल, तर-तर कर डालता,
इसी नाव के हम नाविक, ज़रा जोर लगायें अगर..
शाम-रात-सुबह-दोपहर, लगे इसमें ४ पहर,
मद्धम-मद्धम गुजरता पल, रुका हुआ ये शहर,
शहर के सन्नाटे को रौंदता, ये समय-रथ का कहर,
इसी रथ के हम सारथी, बाजुओं में दम हो अगर..